स्मृति जलधि तरंगा
मेरा सबसे बड़ा दुख है कि नोएडा के आसमान में हवाई जहाज
बहुत छोटा दिखाई देता है। आईआईएमसी से हवाई जहाज बहुत बड़ा दिखाई देता था। शायद
इसलिए कि वहां हम आकाश में थे या फिर वहां से आकाश थोड़ा नजदीक था, यहां से दूर
है। आईएमसी इसलिए भी याद आएगी।
जिंदगी में कहीं भी रहेंगे, कुछ भी करेंगे लेकिन जब भी कभी खाली बैठे यादों के शहर में गोता लगाएंगे और उस शहर में जब आईएमसी का मोहल्ला आएगा तब तब याद करेंगे, जावेद की दुकान के सामने की वो घास जहां शाम के 7 बजे हिंदी पत्रकारिता के कुछ नए चेहरे एक वृत्त की शक्ल में बैठे हैं और उनमें अनुराग नाम का वो शख्स बड़ी मीठी आवाज में गीत सुना रहा है, उसके बाद विवेक नाम का वो लड़का मुझे अपनी कविता सुनाने के लिए जिद कर रहा है। तब याद करेंगे कि टंकण के प्रैक्टिकल में कोई मुझसे पूछ रहा है कि ‘प’ लिखने के लिए कौन सा कीपैड दबाएं। तब याद करेंगे कि महिपाल की कैंटीन के बाहर सीढ़ियों पर कोई अमण बराड़ लोगों की मिमिक्री कर रहा है और सब ठठा कर हंस रहे हैं। तब याद करेंगे कि पांच लोग योगा रुम में इकट्ठे हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें बोलिए डिस्कशन शुरु करना है। तब याद करेंगे कि दो बज गए और आज राजेंद्र चुघ की क्लास है, जल्दी पहुंचना है क्योंकि उनकी क्लास में अगर आप लेट हैं तो आईएमसॉरी य़ू आर नॉट फिट फॉर रेडियो। तब याद करेंगे कि अगली क्लास देवेश किशोर की है सो निकल लो नहीं तो तीन घंटे पको। तब याद करेंगे क्लास के दाएं से तीसरे रो की पीछे की सीट पर बैठे हम सोने की कोशिश कर रहे हैं, शताक्षी सोने नहीं दे रही, और देवेश किशोर हमारी ओर देखकर हमें डांटे जा रहे हैं। हम याद करेंगे सुभाष सेतिया की क्लास में पूरा क्लास खफा न्यूज ग्रुप पर जुट गया है। तब याद करेंगे बैडमिंटन कोर्ट में इस गेम के बाद अपना नंबर आ सकता है। तब याद करेंगे कि साढ़े सात बजे लाइब्रेरी से निकलने के बाद ब्रह्मपुत्रा चाय पीने जाना है। तब याद करेंगे लैब जर्नल की क्लास में अटेंडेंस सीट लेकर कृष्णा सर मुझे ढूंढ रहे हैं। तब याद करेंगे कि बॉलीवाल ग्राउंड में क्रिकेट चल रहा है, और हम आईएमसी के मेन गेट के पास वाले छोटे से पार्क में लेटकर किताब पढ़ रहे हैं। तब याद करेंगे कि कई दिनों से हम खाली ही नहीं हो पा रहे हैं कि अपनी नई लिखी कविताओं को अपनी डायरी पर उतार सकें। तब याद करेंगे कि कोर्ट में बैडमिंटन चल रहा है और हम अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। तब याद करेंगे कि आज भी 10 बज गए और हम अभी कैंपस में हैं। तब याद करेंगे कि कैमरा इश्यू करवा लिया है अब पीटूसी कर रहे हैं। तब याद करेंगे कि आज शुक्रवार है और आज बोलिए करवाना है। और याद करेंगे ऐसी ही अनेक समृति जलधि तरंगों को जिसने जीवन में पहली बार एक साथ इतने सारे हंसने के मौके दिए। तब याद करेंगे ऐसी स्मृति चंद्र किरणों को जिनकी पृष्ठभूमि में अंधेरा तो था लेकिन कुछ सीख पाने की रोशनी होने का आश्वासन भी था।
जिंदगी में कहीं भी रहेंगे, कुछ भी करेंगे लेकिन जब भी कभी खाली बैठे यादों के शहर में गोता लगाएंगे और उस शहर में जब आईएमसी का मोहल्ला आएगा तब तब याद करेंगे, जावेद की दुकान के सामने की वो घास जहां शाम के 7 बजे हिंदी पत्रकारिता के कुछ नए चेहरे एक वृत्त की शक्ल में बैठे हैं और उनमें अनुराग नाम का वो शख्स बड़ी मीठी आवाज में गीत सुना रहा है, उसके बाद विवेक नाम का वो लड़का मुझे अपनी कविता सुनाने के लिए जिद कर रहा है। तब याद करेंगे कि टंकण के प्रैक्टिकल में कोई मुझसे पूछ रहा है कि ‘प’ लिखने के लिए कौन सा कीपैड दबाएं। तब याद करेंगे कि महिपाल की कैंटीन के बाहर सीढ़ियों पर कोई अमण बराड़ लोगों की मिमिक्री कर रहा है और सब ठठा कर हंस रहे हैं। तब याद करेंगे कि पांच लोग योगा रुम में इकट्ठे हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें बोलिए डिस्कशन शुरु करना है। तब याद करेंगे कि दो बज गए और आज राजेंद्र चुघ की क्लास है, जल्दी पहुंचना है क्योंकि उनकी क्लास में अगर आप लेट हैं तो आईएमसॉरी य़ू आर नॉट फिट फॉर रेडियो। तब याद करेंगे कि अगली क्लास देवेश किशोर की है सो निकल लो नहीं तो तीन घंटे पको। तब याद करेंगे क्लास के दाएं से तीसरे रो की पीछे की सीट पर बैठे हम सोने की कोशिश कर रहे हैं, शताक्षी सोने नहीं दे रही, और देवेश किशोर हमारी ओर देखकर हमें डांटे जा रहे हैं। हम याद करेंगे सुभाष सेतिया की क्लास में पूरा क्लास खफा न्यूज ग्रुप पर जुट गया है। तब याद करेंगे बैडमिंटन कोर्ट में इस गेम के बाद अपना नंबर आ सकता है। तब याद करेंगे कि साढ़े सात बजे लाइब्रेरी से निकलने के बाद ब्रह्मपुत्रा चाय पीने जाना है। तब याद करेंगे लैब जर्नल की क्लास में अटेंडेंस सीट लेकर कृष्णा सर मुझे ढूंढ रहे हैं। तब याद करेंगे कि बॉलीवाल ग्राउंड में क्रिकेट चल रहा है, और हम आईएमसी के मेन गेट के पास वाले छोटे से पार्क में लेटकर किताब पढ़ रहे हैं। तब याद करेंगे कि कई दिनों से हम खाली ही नहीं हो पा रहे हैं कि अपनी नई लिखी कविताओं को अपनी डायरी पर उतार सकें। तब याद करेंगे कि कोर्ट में बैडमिंटन चल रहा है और हम अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। तब याद करेंगे कि आज भी 10 बज गए और हम अभी कैंपस में हैं। तब याद करेंगे कि कैमरा इश्यू करवा लिया है अब पीटूसी कर रहे हैं। तब याद करेंगे कि आज शुक्रवार है और आज बोलिए करवाना है। और याद करेंगे ऐसी ही अनेक समृति जलधि तरंगों को जिसने जीवन में पहली बार एक साथ इतने सारे हंसने के मौके दिए। तब याद करेंगे ऐसी स्मृति चंद्र किरणों को जिनकी पृष्ठभूमि में अंधेरा तो था लेकिन कुछ सीख पाने की रोशनी होने का आश्वासन भी था।
आईएमसी का जब भी जिक्र होगा, इतनी चीजें तो एक बार में ही
दिमाग से हवा के झोकों की तरह गुजर जाएंगी, जिसके बाद आंखों की सीमाएं एक जलप्रलय
को थामने की भरपूर कोशिश करेंगी और होठों के भूगोल पर एक हल्की सी हलचल होगी। तब
यह खुमारी सामने खड़े उस नए चेहरे के यह कहते ही टूट जाया करेगी कि- ‘अकेले-अकेले क्यों मुस्कुरा रहे हैं?'
चलिए, आखिर में स्मृतियों के राष्ट्र को एक गीत सौंप जाते हैं। एक स्मृति गीत..जिसमें सब कुछ समाहित करना उतना ही मुश्किल है जितना इन स्मृतियों का फिर से हकीकत बनना.
स्मृति गान
स्मरण-प्रतिक्षण मन में गूंजित,
उर एकांत समाए।
कल-कल धार समय की बहती,
ठहरे ना ठहराए।
गुरुजन-हितजन-प्रियजन-नयनन
ओझल, बोझिल जीवन।
बहु क्षण हर्षित – बहु संघर्षित
बहु स्नेहिल अनबन।
दहिया-गंगा-इम्यूनोलॉजी
कॉलेज कैंटीन।
पांव निकलते, चलते-चलते, रुकते
इन पर प्रतिदिन।
मन चाहे बिसराए,
पर कुछ भूल न पाए।
आईएमसी सतरंगा।
झर-झर तट पर मन के लहरे
समृति जलधि तरंगा।
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